Description
धर्मसम्राट् ब्रह्मलीन स्वामी श्री करपात्री जी महाराज द्वारा प्रणीत यह पुस्तक भारतीय धर्म-दर्शन की निधि है। इसमें स्वामीजी ने पाश्चात्त्य दार्शनिकों, राजनीतिज्ञों की जीवनी, उनका समय, मत-निरूपण, भारतीय ऋषियों से उनकी तुलना, विकासवाद का खण्डन, ईश्वरवाद का मण्डन, मार्क्सवाद का प्रबल शास्त्रीय आलोक में विरोध तथा न्याय और वेदान्त के सिद्धान्त का विस्तार से प्रतिपादन किया है। यह राजनीति और दर्शन के विश्वकोश के रूप में आदरणीय और मननीय ग्रन्थ है।
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