युगगीता “कर्म-संन्यास और कर्मयोग” नामक एक पुस्तक है, जो परम पूज्य गुरुदेव द्वारा लिखी गई है। यह भाग, गीता के तीसरे अध्याय पर आधारित है, जिसमें कर्मयोग और संन्यास के बीच संबंध और महत्व को समझाया गया है। इसमें कर्मयोग को संन्यास की प्राप्ति का एक साधन बताया गया है, और यह भी स्पष्ट किया गया है कि कर्मों को त्यागने की बजाय, उन्हें भगवान को अर्पित करके कर्मयोग का पालन करना चाहिए।
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