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Edition : 2024
Pages : 400
Weight : 480 gm
Size : 21×14 cm
Author : Pt. Shree Ram Archarya
Language : Hindi
Binding : Hardcover
“दृश्य जगत की अदृश्य पहेलियाँ” (The Invisible Puzzles of the Visible World) एक ऐसा विषय है जो भौतिक दुनिया के पीछे छिपे रहस्यों और जटिलताओं को दर्शाता है। यह पुस्तक या लेख, संभवतः पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित, इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे दृश्यमान चीजें, जैसे कि प्रकृति और ब्रह्मांड, एक अनदेखी, सूक्ष्म शक्ति द्वारा संचालित होती हैं।
परमपूज्य गुरुदेव ने वाङ्मय के इस खंड में बताया है कि आस्तिकता वस्तुत: बुद्धिसंगत, तर्कसंगत एवं प्रमाणों से प्रतिपाद्य है । जो सही अर्थों में वैज्ञानिक है, वह ईश्वरीय सत्ता को नकार नहीं सकता । विज्ञान, सद्ज्ञान व्यक्ति को नास्तिक नहीं सही माने में आस्तिक बनाता है व यह सोचने हेतु मजबूर करता है कि इस सृष्टि का कोई न कोई कर्त्ता- धर्त्ता है अवश्य । वह व्यक्ति नहीं है परब्रह्म है, सर्वव्यापी विधि-व्यवस्था है, नियामक तंत्र है जिसका दृश्य एवं अदृश्य लीला जगत ऐसी विलक्षणताओं से भरा पड़ा है जिन्हें देखकर कारण समझ में न आने पर दाँतों तले उँगली दबानी पड़ती है । यही विश्वास सुदृढ़ होने लगता है कि विज्ञान की पहुँच से परे भी कोई विलक्षण सत्ता है जिसके क्रियाकलापों को अभी गहराई से जाना नहीं जा सका है और न ही समाधान खोजा जा सका है कि ऐसा क्यों होता है ? सतत घटित होते रहने वाले इन घटनाक्रमों का कोई विज्ञानसम्मत कारण न मिलने पर इन्हें अविज्ञात के गर्त में धकेल दिया जाता है फिर भी यह एक तथ्य तो स्पष्ट है कि विराट के एक घटक प्रकृति को अभी पूरी तरह जान पाना संभव नहीं हो पाया है । यही हमें उस सत्ता के दर्शन होते हैं, जिसे अचिंत्य, अगोचर, अगम्य कहा गया है । परब्रह्म की सत्ता को इस रूप में भी मानते हुए आस्तिकता की अपनी मान्यताओं को परिपुष्ट-परिपक्व बनाया जा सकता है । यह अंधविश्वास नहीं, वरन जो कुछ दृश्यमान सत्य है उसकी अनुभूति है कि यह सब उस परमात्मा की विनिर्मित रचनाएँ हैं, जिसे हम आँखों से देख नहीं पाते । परमपूज्य गुरुदेव ने प्रत्यक्ष की तुलना में परोक्ष को अधिक महत्त्व दिया है । प्रत्यक्ष को उन्होंने जड़ एवं आवरण और परोक्ष को चेतन प्रेरणा माना है और चेतना को ही वातावरण का, मनःस्थिति का, परिस्थिति का जन्मदाता कहा है ।
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