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Weight: 0.6
Size: 22x15x4 cm
Pages: 100
Author: Swami Ramsukhdas Ji
Edition: 2024
श्रीरामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक महान ग्रंथ है, जिसे भक्तिभाव और आध्यात्मिक ज्ञान का अमृत माना जाता है। इस ग्रंथ के “मानस नाम वंदना” खंड में तुलसीदास जी ने भगवान श्रीराम और इस ग्रंथ की महिमा का गुणगान किया है। यहाँ इसका भावार्थ प्रस्तुत है: मानस नाम वंदना (श्रीरामचरितमानस के आरंभ में) वंदऊं प्रथम महीसुर चरना। गुरु पद रज मृदु मंजुल बरना।। सबसे पहले मैं गुरु के चरणों की वंदना करता हूँ, जिनकी चरण-धूलि से ही यह पवित्र ग्रंथ संभव हुआ। बंदऊं हरि हर सरन सुहाई। जगदुद्धारिनि सृष्टि उपाई।। मैं हरि (विष्णु) और हर (शिव) की वंदना करता हूँ, जो संसार के रचयिता और उद्धारकर्ता हैं। सियाराममय सब जग जानी। करहूं प्रनाम जोरि जुग पानी।। मैं संसार को सियाराममय (श्रीराम और सीता का स्वरूप) मानकर दोनों हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम करता हूँ। बंदऊं तुलसी के मन माहीं। राम चरित जो गावहिं नाहीं।। उन संतों को वंदन करता हूँ, जो रामचरित का गायन करते हुए भक्तों का कल्याण करते हैं। सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।। मैं हनुमान जी का स्मरण करता हूँ, जिन्होंने पवित्र नाम का जप कर भगवान श्रीराम को अपने अधीन कर लिया। महत्त्व और भावना मानस नाम वंदना में तुलसीदास जी ने गुरु, भगवान श्रीराम, शिव, और संतों की महिमा का गुणगान करते हुए यह समझाया है कि भक्ति, विनम्रता, और श्रद्धा से सब कुछ संभव है। यह वंदना हमें मार्गदर्शन देती है कि जीवन में भक्ति और सत्संग के माध्यम से ईश्वर की कृपा पाई जा सकती है। यह वंदना श्रीरामचरितमानस को आरंभ करने से पहले उसके प्रति श्रद्धा और समर्पण को प्रकट करती है।
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