Description
सूरसागर’ ब्रज भाषा साहित्य का ही नहीं समग्र हिन्दी साहित्य का गौरव ग्रंथ है । उसके समान सरसता में और परिमाण में दूसरा कोई ग्रंथ हिन्दी साहित्य में नहीं है । इस सम्पूर्ण ग्रंथ के प्रकाशन का शुभ दिन अभी नहीं आया है । अनेक संस्थाओं और विद्वानों द्वारा छोटे मोटे रूपों में सूरसागर अवश्य प्रकाशित हुआ है और सूर के साहित्य पर पर्याप्त रूप में लिखा भी जा चुका है । हर्ष का विषय है कि कविवर श्रीबालमुकुन्द जी चतुर्वेदी ‘मुकुन्द’ जी ने सूरसागर का सप्त तरंगों में सुसम्पादन किया है । श्री मुकुन्दजी ने सूरसागर को सिद्धान्त के पद, भागवत के पद, पूर्णपुरुष लीला के पदों के अतिरिक्त नित्य कीर्तन वर्षोत्सव तथा लौकिक और अलौकिक भावना पद में चयन कर सूरसागर को साहित्य जगत के सामने एक सुंदर व्यवस्थित रूप में लाना उनका एकदम नया और स्तुत्य प्रयत्न है ।
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