Jhansi Ki Rani (Hindi) : The Legendary Queen’s Battle for Freedom | Novel | Courage & Patriotism | Historical Fiction | Rani Lakshmibai | Hindi Literature | Indian Writing By Vrindavan Lal Verma / Prabhat Prakashan ( Hardcover / Hindi )

Original price was: ₹699.00.Current price is: ₹649.00.

Edition : 2024

Pages :  349

Size : 21×14 cm

Author : Vrindavan Lal Verma

Language : Hindi

Weight : 430 gm

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, 19 नवंबर 1828 को मराठा ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई थी, जिनका जन्मस्थान काशी (वाराणसी) था. उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका तांबे था, लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहकर पुकारा जाता था. 1842 में उनकी शादी झांसी के महाराजा गंगाधर राव से हो गई, जिसके बाद वे झाँसी की रानी बन गई. 18 जून 1858, ग्वालियर में अंग्रेजों के साथ युद्ध में वीरगति प्राप्त की .
रानी ने घोड़े की लगाम अपने दाँतों में थामी और दोनों हाथों से तलवार चलाकर अपना मार्ग बनाना आरंभ कर दिया। रानी की दुहत्थु तलवारें आगे का मार्ग साफ करती चली जा रही थीं। रानी के साथ केवल चार सरदार और उनकी तलवारें रह गईं। रानी ने देशमुख की सहायता के लिए सुंदर को इशारा किया और स्वयं संगीनबरदारों को दोनों हाथों की तलवारों से खटाखट साफ करके आगे बढ़ने लगीं। एक संगीनबरदार की हूल रानी के सीने के नीचे पड़ी। उन्होंने उसी समय तलवार से उस संगीनबनदार को खतम किया। हूल करारी थी, परंतु आँतें बच गईं। रानी ने सोचा, स्वराज्य की नींव बनने जा रही हूँ। रानी के खून बह निकला। —इसी उपन्यास से अदम्य साहस, शौर्य और देशभक्ति की प्रतिमूर्ति झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर केंद्रित इस उपन्यास में बाबू वृंदावनलाल वर्मा ने तत्कालीन राजनीतिक-सामाजिक परिवेश का ऐसा सजीव चित्रण किया है मानो पूरा घटनाक्रम हमारी आँखों के सामने हो रहा हो। झाँसी की रानी का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। रानी स्वराज्य के लिए लड़ीं, स्वराज्य के लिए मरीं और स्वराज्य की नींव का पत्थर बनीं। अद्भुत, प्रेरणाप्रद, पठनीय ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति!

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