रामकथा का संसार में शतकरोड़ विस्तार है। उसमे बहुत कथा मिर्त्युलोक में स्थित है , जिस प्रकार वाल्मीकिजी ने अपनी २४००० चौबीस सहस्त्र रामायणमे पुरुषकी प्रधानता कही है , उसी प्रकार इसमें प्रकर्ति ( शक्ति ) का प्रभाव वर्णन किया है , जिस प्रकार प्रकर्ति – पुरुष से जगत होता है उसी प्रकार राम – सीतासे पृथ्वी का भार उतारना इस ग्रन्थ में वर्णन किया है राम सीता एक ही है। इनमे कुछ भेद नहीं है इस प्रकार जानकी माहात्म्य भी राम ही का माहत्म्य है। ये सम्पूर्ण कथा अध्यात्म पर है। इसमें रामकी ब्रह्मा और जानकी की शक्ति प्रगट रूप से वर्णन किया है। इस ग्रन्थ के संस्कृत में होनेसे सर्व साधको इसका आशय विदित नहीं होता है। , केवल कही कही बहुत संछेप में इसकी चर्चा होती थी , इस कारण हरिभक्त महात्माओ के विनोदार्थ इसकी भाषा टीका कर सब प्रकार के स्वत्वसहित ये ग्रन्थ वेश्यावंशवतंश सेठ शिरोमणि ” श्रीवेनटेश्वर ” स्ट्रीम यंत्रालयाधिपति खेमराज श्रीकृषणदास जी महाशय कर दिया।।। टीकाकार – पंडित ज्वालाप्रसाद मिश्र
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